अश्वत्थामा: महाभारत का अमर योद्धा

 

अश्वत्थामा: महाभारत का अमर योद्धा

भूमिका:

कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में, मृत्यु और जीवन के बीच, दुर्योधन के मुंह से ये अंतिम शब्द निकले, "दुनिया ये सोचेगी कि मुझे भीम ने मारा। लेकिन तुम्हारी वजह से मेरी मौत हुई।" इन शब्दों के पीछे एक ऐसा योद्धा था जिसने एक ऐसा अत्याचार किया कि दुर्योधन जैसे पापी भी कांप उठे। "मैंने पांडवों को मार दिया।" ये सुनकर दुर्योधन कुछ क्षणों के लिए खुश था, लेकिन जब उसे सच्चाई पता चली, तो उसका उत्साह गुस्से और घृणा में बदल गया।

अश्वत्थामा का परिचय:

अश्वत्थामा, गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र, जो खुद भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उसकी जन्मजात शक्ति और अमरत्व का कारण उसकी मस्तिष्क पर gem था, जो शिव का तृतीय नेत्र माना जाता था। यह gem उसे ऐसी शक्तियाँ देता था कि न तो कोई अस्त्र, न कोई रोग, और न ही कोई भूख या प्यास उसे मार सकती थी।

महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा:

अश्वत्थामा ने महाभारत के युद्ध में कई बार अपनी वीरता साबित की। वह पांडवों के खिलाफ लड़ा और कई बार भीम, युधिष्ठिर और द्रष्टद्युम्न को हराया। एक बार उसने एक लाख पांडव सैनिकों को एक ही वार में मार डाला। लेकिन जब उसकी मित्रता और क्रोध ने उसे अंधा कर दिया, तब उसकी कहानी ने एक भयानक मोड़ लिया।

दुर्योधन का अंत और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा:

महाभारत के अंतिम दिन, दुर्योधन घायल होकर तड़प रहा था। अश्वत्थामा ने उसे आश्वासन दिया कि वह पांडवों का अंत करेगा। उसने रात्रि के अंधेरे में पांडवों के शिविर में घुसकर सोते हुए सैनिकों पर हमला किया। अश्वत्थामा ने सोचा कि उसने पांडवों को मार दिया, लेकिन वास्तव में उसने उनके पुत्रों को मारा।

श्री कृष्ण का श्राप:

जब पांडवों ने देखा कि उनके पुत्र मारे गए हैं, तो उनका क्रोध भड़क उठा। अश्वत्थामा ने प्रतिशोध की ज्वाला में एक ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने की सोची। लेकिन भगवान कृष्ण ने उसे रोका और श्राप दिया, "तू कोढ़ी होगा, तेरी त्वचा सड़ जाएगी। लोग तुझसे भागेंगे। तू भिक्षुक की तरह भटकता रहेगा।"

अश्वत्थामा का वर्तमान:

कहा जाता है कि अश्वत्थामा अब भी इस धरती पर भटक रहा है, भगवान विष्णु के अगले अवतार का इंतज़ार कर रहा है। वह दिन आएगा जब वह इस कलियुग की बुराइयों से दुनिया को मुक्त करेगा।

निष्कर्ष:

अश्वत्थामा की कहानी हमें यह सिखाती है कि क्रोध और प्रतिशोध कभी भी सही रास्ता नहीं होते। उसकी अमरता और कष्टों का चक्र उसकी गलतियों का परिणाम है। क्या आप मानते हैं कि अश्वत्थामा अभी भी हमारे बीच है? यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।

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